पश्चिमी सभ्यता - Paschimi Sabhyata.....KAVITA



 कटे फ़टे छोटे कपड़ो मे अंग अपना दिखाती हो
 टांगे जितनी दिखेंगे नग्न उससे ही शान बताती हो
रुमाल जितनी ड्रेस पहन कर सड़क पर चलती जाती हो
कोई देख तुम्हे देवी कहे ये भी तुम जताती हो
 आधी नंगी टाँगे दिखाके आदमी को बहकाती हो
 जब कोई देखे घूर के उससे ही गलत तुम ठहराती हो

 इज़्ज़त ही चाहिए तो रहिये न इज़्ज़त से इस संसार में
क्यों तन दिखाकर खुद को ले जाती है देहव्यपार में

 नग्नता को आधार बना कर कौनसा नाम कमाना है
अरे बहन ये मत भूलो ये पुरुष प्रधान ज़माना है

थोड़ी सी कोशिश करो सभ्य नारीत्व जीवित करो
अर्धनगंता खत्म करो
और आज़ादी सिमित करो आधे आधे कपड़ो से आधा खुद को ढकती हो
और इन्ही कपड़ो से गली गली भटकती हो

तुम्हे लगता है तुम परी लगती हो
 पर तुम क्या जानो कितनो की आँखों में खटकती हो

 हो सके तो थोड़ा बदलाव तुम खुद लाओ
 नग्नता से नही खुद को बुद्धि से मजबूत बनाओ


 कम से कम इतनी तो बनाना की बाप भाई इज़्ज़त से बाहर निकल सके
 कोई उन्हें देख कुछ तुम्हारे लिए बोलने की कभी हिम्मत न कर सके

सोच छोटी है मेरी अब ये आप कहेंगी
लेकिन हम जैसे घरेलू महिला कब तक चुप रहेन्गे

 मैं बस यही कहूंगी की प्रभु चाहे ज़माना कितना ही अजीब हो पर आने वाले समय में बच्चो को बस माँ का आँचल नसीब हो!!


💝 अनन्या गुप्ता

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