कविता(कश्मीर का दर्द)


 कश्मीर
कैसे कह दूं ये कश्मीर हमारा हैं।कैसे कह दूं वहां शांत वादियों का नजारा हैं।

जहाँ खेल होता हो खुनी हर दिनवो भारत माँ के लालो का हत्यारा हैं।।

नहीं चाहिए वो कश्मीर हमें हरगिज जिसने कई मांगो का सिन्दूर उजारा हैं।





एक बार फिर 17 शेरो को चन्द गीदड़ो ने
 साजिश करके मौत के घाट उतारा हैं।

दे रहा हो सारा देश गालियाँ पाकिस्तान कोलेकिन 
मेरे हिसाब से तो ये अपनी खामोशी का नजारा हैं।

महामहिम क्यों नही करते आदेश युद्ध का
या देश से ज्यादा आपको कुर्सी का मोह प्यारा हैं।

दे दो मुझको फांसी सरकारों के खिलाफ बोलने परलेकिन चुप नहीं बैठूंगा मैं 
क्योकि आज फिर उन्होंने किसी बहिन के भाई को मारा हैं।


एड.नवीन बिलैया

सामाजिक एवं लोकतांत्रिक लेखक

मो.:-9806074898

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