गजल


मन में आशा की कोई ज्योत जलाओ तो सही।
ये घुटन और ये $गम दिल से हटाओं तो सही।
अपने संकल्प में कुछ ठान के आओ तो सही,
अपनी मंजिल की तरफ पांव बढ़ाओ तो सही।
हो गये पार तो ये दिल से दुआये देंगे,
बेसहारों को कोई आस बंधाओ तो सही।
उसका एहसास ही सब काम संवारेगा तेरे,
उसके चरणों में कभी सर को झुकाओ तो सही।
रोशनी प्यार की निकलेगी तो जगमग होगी
दिल में उल्फत की कोई बात बिठाओं तो सही।
शोखियां झूम उठें, झूम उठे सब आलम,
जुल्फ कंधे पे कभी यूँ भी गिराओं तो सही।
रास्ते प्यार के जन्नत की झलक देवेंगे
दिल में फूलों की कोई शराब खिलाओं तो सही।
क्या पता इसमें निद्रा प्यार के गुलशन निकले,
तुम भी ‘नुद्रत’ ये कदम आगे बढ़ाओं तो सही।



सौजन्य से :


त्रिवाहिनी मासिक पत्रिका


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